...

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मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,

बेगुनाह होकर भी देखो कैसे ,
सब अपने ही घर में कैदी है,
ये नजदीकियां से फासले तक कि दूरी है ,
पर आखिर मिलना भी तो जरूरी है ,
इज्जत के नाम पर खुद ही खुशियां कुर्बान करना भी तो मजबूरी है ,
लेकिन समाज क्या क्या सोचता है इसका अंदाजा लगाया जाना उनको ज्यादा जरूरी है....
हो बेटी के आसु या बेटी की बदकिस्मती
लगाकर पराया धन का इल्ज़ाम विदाई दी जाती है ,
अब झूठ नहीं मजबूरी जो है ,
तुम्हीं जानो क्या ज़रूरी है •••




© Angelite** :)