...

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Mohobbat ki Sham
एक रोज़ मोहब्बत की शाम को
हम वफ़ा परोसे बैठे थे
दिल में छुपी दर्द भरी बातें
लबों पे मुस्कुराहट लिए बैठे थे

वो जाम जो इश्क़ का पी रखा था,
मदहोश उसके नशे में थे,
दिल में उनकी यादों को छुपा रखा था,
हर लम्हा उनका इंतेज़ार करते थे.

फितरत मेरी तुम्हारे आशिक जैसी
बातें ग़ालिब की शायरी थी
दिल को छू जाती थी तेरी आँखें
हर लफ़्ज़ में इज़हार-ए-मोहब्बत की बेकरारी थी

© Medwickxxiv