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रिश्ते गर होते लिबास
"रिश्ते गर होते लिबास"

रिश्तों का इस कदर लिबास होना,
मुमकिन नहीं है इस बात का होना।
लिबास की तरह कैसे बदले जाएंगे,
खून के ये पक्के रिश्ते बिखर जायेंगे।

हो नहीं सकता जो उसे सोचना क्या.?
उल जलूल सोचता है इस मन का क्या.?
कागज़ की नाव पे सवार समंदर पार हो जाती,
बिना पंख के ही कभी तारे गिन आती ।

सोचे ये मन बावरा"रिश्ते गर होते लिबास",
बदल ही लेती मैं है जो ये खुदगर्ज इंसान।
स्वार्थ,लालच,वहम,मक्कारी से भरे हुए रिश्ते,
छोड़ ,तोड़,बनाती बेजुबानों से निः स्वार्थ रिश्ते.।

लेखक_#shobhavyas
#Writco
#writcopoem