"खत्म कैसे करु?",,,
सोचती हु खत्म कर दु सब,,
मगर क्या ये मुमकिन है,,
भुला देना सबको इतना आसान तो नहीं,,
उलझनों से हम अपने अंजान तो नहीं,,
मिटा भी दु हर रिश्ता मगर यादों का क्या करु,,...
मगर क्या ये मुमकिन है,,
भुला देना सबको इतना आसान तो नहीं,,
उलझनों से हम अपने अंजान तो नहीं,,
मिटा भी दु हर रिश्ता मगर यादों का क्या करु,,...