एक तरफा मुहब्बत
जिसका होठों पर रहता है जिक्र,
उसको नहीं है मेरी फिक्र।
ये भी क्या मुहब्बत का बंधन,
कोई यार जब फिक्र ना करे।
हम क्यूँ किसी पर मरे,
लोग कर देते हैं अपना या औरों की जिंदगी बर्बाद,
पर मुझे नहीं इनसे इत्तेफाक।
लैला-मजनू, शीरी-फरहाद; ना जाने कितने,
हो गए तबाह इस उल्फ़त-ए-इश्क में ।
नहीं करना, नहीं करना मुझे नहीं करना
यूँ इश्क़ में अपनी जिन्दगी बर्बाद।
© Divya Prakash Mishra
उसको नहीं है मेरी फिक्र।
ये भी क्या मुहब्बत का बंधन,
कोई यार जब फिक्र ना करे।
हम क्यूँ किसी पर मरे,
लोग कर देते हैं अपना या औरों की जिंदगी बर्बाद,
पर मुझे नहीं इनसे इत्तेफाक।
लैला-मजनू, शीरी-फरहाद; ना जाने कितने,
हो गए तबाह इस उल्फ़त-ए-इश्क में ।
नहीं करना, नहीं करना मुझे नहीं करना
यूँ इश्क़ में अपनी जिन्दगी बर्बाद।
© Divya Prakash Mishra