...

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मेरा एकान्त
यों तो मैं अपनो संग रहता हूँ।
लगता है लॉगो को खूब मौज शोक मे रहता हूँ।
वैसे रहने को मेरे पास पक्का घर है।
आने जाने को दुक्का गाड़ी है।
अपने लॉगो से घिरा हूँ चारों तरफ।
फिर भी मैं अकेला हूँ हर तरफ।
भीड़ भाड़ से अचानक खो जाता हूँ यकायक।
मेरे अंदर अचानक एकांत की दुनिया आ बस्ती है।
जो मेरे चारों तरफ है वो बेगानों की बस्ती लगती है।
सोचता हूँ यहाँ बाहर कौन अपना है।
मेरे अपने तो मेरे एकांत मे है।
उस बाजार मे नज़र आती है मेरी असफल तायें निराशाये भुत की ज़ुल्मि मुँह बीचकाये हंसती सी नज़र आती है।
और हम फिर कम उम्र मे चलें जाते है।
बड़ा आनंद आता है पुराने दिनों मे लौटकर
उन असफलताओ का कारण मुझे आज पता लगता है।
और लगता है कि मैं पल भर् मे अभी फतह करता हूँ।
लेकिन यह क्या ये तो तेरा गुजारा हुआ कल है।
तभी एकांत से आवाज आती है अरे तेरा गुजारा हुआ कल है तो क्या हुआ।
पता नहीं कितनों का कल आने वाला है।
पथ प्रदर्शक बन उनका उनकी राहें सुगम कर ।
कौनधी चपला मन मस्तिष्क में।
ऐसा लगा मिल गया मोती शीप में।
अगाध सुकून मिला मन मे उमंग छाई ।
नई चेतना की बहार आयी।
ऐसा लगा मेरे एकान्त ने नई दुनिया बसाई।
इस जहाँ के परे दूसरा जहाँ नज़र आगया।
दूज के चाँद की तरह मेरा एकान्त छा गया।