...

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मेरी क़लम ... मेरी मोहब्बत
उस दहलीज़ से इस दहलीज़ तक
आते आते पहचान बदल जाती है!
ज़िन्दगी की इस क़िताब में रोज़
न जाने वो कितने क़िरदार निभाती है!
बाबुल के आँगन की परी थी कभी
आज वो झूठी कोई कहानी सी लगती है!
मरहम बन कर...