...

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मुंह की खाना पड़े तो!
मुंह की खाना पड़े तो इंसान इंसाँ नहीं रहता,
ज़िंदा हो या मुर्दा हो उस में जहाँ नहीं रहता।

क़ुरआन-ओ-गीता में जिसका मन नहीं लगता,
मेरे यारों उस पे ख़ुदा कभी मेहरबाँ नहीं रहता।

नाम से तअल्लुक़ कर जिनका इज़ाफ़ा हुआ है,
अरे उनकी ज़िंदगी में कोई आसमाँ नहीं रहता।

मुसीबत जब आन पड़ी है वो ख़ुदाका तोहफ़ा है,
ग़र जीत गए तो फिर चेहरा गिरियाँ नहीं रहता।

गुलज़ार चमन हो तो उस का अपना ज़रूर है,
कांटों के चमन का कोई भी बाग़बाँ नहीं रहता।

~शिवम राज व्यास "रूह"

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