कश्मकश ज़िंदगी
#EmotionalDuality
ज़िंदगी थी कभी खुशगवार।
हंसता खेलता मेरा परिवार।
ऐसे थे हमारे द्वार ।।
एक ही कश्ती में थें सब सवार।
और एक ही थे पतवार।।
कोरोना के दौर में हाय !
छूट गए मेरे पतवार.....
बिखर गया मेरा पूरा परिवार।।
डूब गई कश्ती और ....
टूट गए सांसों के तार ।।
और कमबख्त मेरी ज़िंदगी....
ने किया मुझ पर ज़िंदगी से वार।
धीमी धीमी होती है मुझपे धड़कनों से वार।
फिर भी मैं ज़िंदगी जीता हूं मेरे यार।।
ज़िंदगी थी कभी खुशगवार।
हंसता खेलता मेरा परिवार।
ऐसे थे हमारे द्वार ।।
एक ही कश्ती में थें सब सवार।
और एक ही थे पतवार।।
कोरोना के दौर में हाय !
छूट गए मेरे पतवार.....
बिखर गया मेरा पूरा परिवार।।
डूब गई कश्ती और ....
टूट गए सांसों के तार ।।
और कमबख्त मेरी ज़िंदगी....
ने किया मुझ पर ज़िंदगी से वार।
धीमी धीमी होती है मुझपे धड़कनों से वार।
फिर भी मैं ज़िंदगी जीता हूं मेरे यार।।