इंतज़ार
जैसे कोई पल का इंतज़ार कर रहा हूँ मैं,
दिन ढलते रातें गिन रहा हूँ मैं।
ना जाने क्यों फिर से भूल रहा हूँ मैं,
खुद से खुदको छिपा कर, लोगों से मिल रहा हूँ मैं।
ना हस ना रो रहा हूँ मैं,
एक थम सा पल जैसे बन रहा हूँ...
दिन ढलते रातें गिन रहा हूँ मैं।
ना जाने क्यों फिर से भूल रहा हूँ मैं,
खुद से खुदको छिपा कर, लोगों से मिल रहा हूँ मैं।
ना हस ना रो रहा हूँ मैं,
एक थम सा पल जैसे बन रहा हूँ...