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दास्तान-ए-कलम
गुज़श्ता दशकों में आदमी ने कई कमाल किये हैं
नाचते गाते सब हाल-ए-दिल भी बेहाल किये हैं
देख इन्सां तेरी चालाकी ने कैसे तन्हा कर दिया
सदाचार और विचारों पर अनायास हमला कर दिया
कोई साथ न होगा, साँझ ढले जब राही लौटता होगा
फिर से वही जलता दिल, फिर से खून खौलता होगा
इस हाल-ए-बेबसी में मुसाफिर मारे-मारे फिरता है
ज्यों अपमानित शत्रु रण में हारे-हारे फिरता है

दलाल मिलते हर मोड़ पर, मौका-ए-नफा भुनाने को
मिलता न पर खुदा का बंदा, दिल का हाल सुनाने को
भली रूह समझती है, जो भी वालदेन का क़र्ज़ है
ग़म छुपा उन्हें खुशी देना ही अब इसका फ़र्ज़ है

निगाहें मचलती है, दिशाओं से लड़ती भी हैं
जाने किसकी तलाश है, सहसा अकड़ती भी हैं
स्याह रातों के अँधेरे कमरों में छिप बहती भी हैं
परवानों की भाँति शमा से फिर ये कहती भी हैं
कहती हैं ज़ालिम संसार जी कर अब जी ऊब गया है
क़तरा क़तरा हो आँखों के रस्ते दिल भी खूब गया है

ऐसी विषम स्थितियों में, यही कलम सहारा बनती है
तीरगी से सनी राहों में, वही यार शरारा बनती है
उस मनमीत की याद जब कभी मुझे सताती है
मुझको खुद में भरकर यह, हर पन्ने पर चलाती है

अश्क़ों से भींगे पन्नों पर चलकर मन हल्का हो ही जाता है
भावनाओं के बाज़ार में बिककर ग़म सस्ता हो ही जाता है
ज्ञान है सच्चा, जो प्रेम से मिलकर रस्ता दिखाई देता है
क्यों बच्चों के कोमल कन्धों पर लदकर बस्ता दिखाई देता है ?

उनका बोझ उतारते हुए जो नए लेख सँरचती है
अक्ल-ओ-होश-ओ-हावास को बखूबी समझती है
अलख ज्योति जगाने को जो लहू भी बिखेरती है
सामाजिक कुरीतियाँ मिटाने को पापों को कुरेदती है
ऐसी निर्मोही शस्त्र की शक्ति को मनुष्य पहचानो
माया में झूलते मन हेतु परमपिता का वर मानो

आज जो एहसास हुआ है, कलम तुमसे यही कहूँगा
तुम्हारे प्रयासों के फलने हेतु, यातनाएँ सभी सहूँगा
प्रियतमे देख रही ही हो तुम, अपितु संघर्ष तो जारी है
बहुत हुआ यूँ आहें भरना, अब असली युद्ध की बारी है ।।

© AbhinavUpadhyayPoet