गुल
गुलिस्तां ने इबादत की गुल की,
कायनात ने कोशिश की मिलाने की,
बारिश धूप और हवाओं ने अपनी अपनी ताकत से मदद की,
तब जाके गुलिस्तां को गुल हांसिल हुआ,
मगर उसने कभी अपना हक नहीं जताया,
इसीलिए गुल सिर्फ वहीं खिला।
(सभी को अपनी तरह से जीने का हक है।
कीसिके पर भी अपना हक जताते ना चलो,
वरना वहां कोई भी मुर्जा जाए गा,
फिर वो कहीं कोई काम का नहीं रहेगा,
तो सिर्फ उसकी संभाल रखो और अपनापन दो,
वो खुशी से खिल उठेगा।)
© exclaimer
कायनात ने कोशिश की मिलाने की,
बारिश धूप और हवाओं ने अपनी अपनी ताकत से मदद की,
तब जाके गुलिस्तां को गुल हांसिल हुआ,
मगर उसने कभी अपना हक नहीं जताया,
इसीलिए गुल सिर्फ वहीं खिला।
(सभी को अपनी तरह से जीने का हक है।
कीसिके पर भी अपना हक जताते ना चलो,
वरना वहां कोई भी मुर्जा जाए गा,
फिर वो कहीं कोई काम का नहीं रहेगा,
तो सिर्फ उसकी संभाल रखो और अपनापन दो,
वो खुशी से खिल उठेगा।)
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