...

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पुरुष ने स्त्री स्वरूप को जाना नहीं
अपने स्वामित्व के अभिमान में डूबे
मां की ममता को पहचाना नहीं,

कुप्रथा में फस गए वो पुरुष
जिन्होंने स्त्री स्वरूप को जाना नहीं

रिश्ता लेकर जब घर आए
पुरुषत्व का था अभिमान छिपा,
सामाजिक शोषण का भाग है वो भी
दहेज को जिन्होंने पाप माना नही ,

कुप्रथा में फस गए वो पुरुष
जिन्होंने,स्त्री स्वरुप को जाना नहीं ||

आई वो नाजुक कोमल कली
मन में जिसके है प्रेम बसा ।
वस्तु की तरह परखा समाज ने
स्त्री होने की उसे मिली सज़ा,।।

शारीरिक सुंदरता ही सबकुछ है उनके लिए
जिसने , नारी हृदय को पहचाना नहीं,

कुप्रथा में फस गए वो पुरुष
जिन्होंने नारी स्वभाव को जाना नहीं!!।।

आवाज़ को परखा,
कद काठी न छोड़ी,,
पैरों की बनावट को परखा
है ये लक्ष्मी या कोढ़ी||

अपने पापकृत नज़रों को
समाज ने हीनता माना नहीं,

कुप्रथा में फस गए वो पुरुष
जिन्होंने नारी स्वभाव को जाना नहीं!!।।

समाज देखता वस्तु की भाती
उस गुड़िया को रौनक थी जो घर की ,,
विवाह रूपी वस्तु का बाज़ार लगाया,
बेटी को वस्तु की भाती सजाया||

आते जाते दो कौड़ी के लोगों ने
उसके विचारों को सुनने योग्य माना नहीं,,

कुप्रथा में फस गए वो पुरुष
जिन्होंने नारी स्वभाव को जाना नहीं!!।।

पिता की इज्जत का बोझ था उसपर,
सामाजिक दर मंडराता था ।
जिसके अंगना में खेली वो
अफसोस,,.. वो पिता भी
उसे भावना हीन ही मानता था ||

उसकी इक्षा ना पूछी किसी ने
उसकी भावनाओ को जाना नहीं ।
शोषण में भागी वो पिता भी हुआ
जिसने बेटे बेटी को बराबर माना नहीं,, ।।

कुप्रथा में फस गए वो पुरुष
जिन्होंने नारी स्वभाव को जाना नहीं!!।।

ससुराल में रहना मर्यादा से
माइके में अब तुम्हारा हक नहीं,।
पति की इज्जत करना ईश्वर की भाती
अपनी इज्जत की सिर्फ
रक्षा करना विरोध नही ,,।।

दोनो घर की इज्जत थोप दी उसपर
उसे कभी प्रेम बंधन में बांधा नहीं,,।
बहू की भूल को अपराध समझ बैठे
जिन्होंने,बहू में बेटी को पहचाना नहीं।।

कुप्रथा में फस गए वो पुरुष
जिन्होंने नारी स्वभाव को जाना नहीं!!।।

आई वो कोमल हृदय की बिटिया
एक नवीन संसार में ,,....।

स्वागत हुआ , तानों और अपेक्षाओं के साथ,
और पति ने मुफ्त का गुलाम बना लिया !!
जब अपने हक के लिए लड़ पड़ी वो
समाज ने उसकी चरित्र पर लांछन लगा दिया!!

लड़की को कमज़ोर दिखाने वाले समाज ने
नारी शक्ति को कभी पहचाना नहीं !!
कुप्रता में फस गए वो पुरुष
जिन्होंने नारी स्वभाव को जाना नहीं!!।।

पढ़ना -लिखना अधिकार था उसका
आत्मनिर्भर बनना अधिकार था उसका।
ससुराल की छोड़ो माईके वालो ने भी !
उसके इस अधिकार को
अधिकार कभी माना नही !!।

कुप्रथा में लिप्त हुआ वो समाज
वो धर्म, वो परिवार भी जिसने
बेटी को इंसान कभी माना नहीं,..

इज्जत थोपी बंदिशे डाली
उसकी इक्षा को पहचाना नहीं ,।

उस पुरुष का पुरुषत्व ही क्या?
जिसने नारी को पूजनीय माना नही !
कुप्रथा में फस गए वो पुरुष
जिसने नारी हृदय को पहचाना नहीं ।।



© Mayank Kumar Kasaudhan