...

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बेटी....
जिन्हें मिलनी चाहिये भरे बाजार में फासी ......
उन्हे मिलती कडी सुरक्षा ,होकर इतने बडे
अपराधी हैं.......
तारीख पे तारिक दि जाती हैं......
देख उन गुन्हगारो को ...
न जाणे डर डर कर कितनी माँ बेहने रोज
चिखती चिल्लाती हैं......
सह कर हैवानीयत वो घबराकर समाज के
बेहकावे में आकर अपने सारे आसू पी जाती हैं.....
जो हमेशा खुद रोकर सबको हसाती हैं....
क्या हर एक गुन्हेगार कि सजा माफी हैं ?....
हमारे देश में अब भी बेटीया सुरक्षित
नहीं पायीं जाती हैं.....
आवाज उठाव लढ़ना सिखावो क्योकी माँ
बेटी पत्नी हो या सहेली हि सही हर घर में
एक परी जन्म लेकर आती हैं.....
ना जाने कब समय बदलेगा,सोच बदलो माँ
दुर्गा सरस्वती काली जैसी वॊ भी शक्ती
शाली हैं....
जिस घर में सुरक्षित हो बेटी उस हर एक
घर में हरियाली हैं.....
देश कि बेटी सुरक्षित रहे यह हम सबकी
जिम्मेदारी हैं.....✍️
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© M@ñsî's Poems