...

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मैदान छोडूंगा नहीं
मैं सफलता के बिना मैदान छोडूंगा नहीं,
जीतने से पहले अपनी जान छोडूंगा नहीं,
'कर' लगे या 'सर' लगे या रास्ते में डर लगे,
जर्रा-जर्रा रोम का इंकार करने भी लगे,
नब्ज़ रुक जाए या चाहे धड़कने धीमी पड़ें,
मेरा मन चाहे मुझी पर वार करने भी लगे,
इस जगत के हित का मैं बलिदान छोडूंगा नहीं,
मैं सफलता के बिना मैदान छोडूंगा नहीं.....
आसमां सी हो चुनौती या स्वयं गिरिराज़ हों,
लड़ते-लड़ते युद्ध में क्षिति प्राण चाहे आज हों,
बर्फ़ का तूफ़ान हो या मृत्यु का आह्वान हो,
लक्ष्य के आगे चुनौती में खड़े यमराज हों,
धैर्य, पौरुष के धनुष का मान छोडूंगा नहीं,
मैं सफलता के बिना मैदान छोडूंगा नहीं.....
जीत की गाथा मिले या हार का टीका लगे,
युद्ध के मैदान में जब खून भी फीका लगे,
तब भी मैं लड़ता रहूं रणभूमि में बिन शीश के,
मोह, अपयश से परे जब सत्य ही नीका लगे,
हौसले की राह का निर्माण छोडूंगा नहीं,
मैं सफलता के बिना मैदान छोडूंगा नहीं.....
© Er. Shiv Prakash Tiwari