अंतिम घड़ी है
नवयुग की गाथा अब प्राण माँगती है,
इतिहास बनना है तो फिर बलिदान माँगती है।
महाक्रांति, उद्दंडता को, आज ललकारती है,
कुरुक्षेत्र की भूमि फिर लहू का कतरा माँगती है।
निज स्वार्थ में बंधु अब उलझना नहीं है,
धरा के पल्लवों से फिर स्वाभिमान माँगती है।
झूठ का ये तिलिस्म अब जो टूट रहा है,
बुलंद आवाज़ करने की माँ भारती प्रण माँगती है।
राष्ट्र धर्म का जो सतत् चीरहरण कर रहे है,
अवसादग्रस्तों को उखाड़ने को समर्पण माँगती है।
अन्याय पथ...
इतिहास बनना है तो फिर बलिदान माँगती है।
महाक्रांति, उद्दंडता को, आज ललकारती है,
कुरुक्षेत्र की भूमि फिर लहू का कतरा माँगती है।
निज स्वार्थ में बंधु अब उलझना नहीं है,
धरा के पल्लवों से फिर स्वाभिमान माँगती है।
झूठ का ये तिलिस्म अब जो टूट रहा है,
बुलंद आवाज़ करने की माँ भारती प्रण माँगती है।
राष्ट्र धर्म का जो सतत् चीरहरण कर रहे है,
अवसादग्रस्तों को उखाड़ने को समर्पण माँगती है।
अन्याय पथ...