रोटी के टुकड़ों के आस में
आज सोया है फिर वह मजदूर
रोटी के टुकड़ों के आस में ।
चल पड़ा था।
अपने पथ पर , रोटी के टुकड़ों के आस में ।
जीवन के उन संघर्षों में भी वह लड़ा
रोटी के टुकड़ों के आस में ।
भोर जगे थे, दिन भर वह मेहनत भी किया
रोटी के टुकड़ों के आस में ।
बिखरी पड़ी थी रोटियाँ पटरी पर ,
वहीं पास में बिखरे पड़े थे टुकड़ों में , वह बहादुर माँ के संतानें ।
घर से कह के निकले थे , प्रदेश से अगली बार त्यौहार में ही लौटूँगा ।
बुढ़े माँ-बाप के लिए दवाईयाँ लाऊंगा ,
पत्नी के लिए एक खूबसूरत बनारसी साड़ी और बच्चों के लिए ढेर सारे मिठाइयों और खिलोने भी लाऊंगा।
घर से प्रदेश के लिए गये भी थे , तो वह
रोटी के टुकड़ों की आस में।
आया कोरोना ठप्प हुई व्यापार , छीन गया मजदूरों के रोजगार भी।
और लक डाउन में खत्म हुई बची खुची पुँजी ,
रोटी के टुकड़ों की आस में।
आस तो जगाया था सियासत दारों ने भी वोट लेते समय ,
सुख दुख में शामिल रहुँगा , मुसीबतों में भी सहारा बनुँगा।
उन्हें आस तो था , सत्ता से मुसीबत के दिनों में सहारे पाने की ,
पायी भी तो सिर्फ झुठी खोकली आस।
पैदल ही निकल पड़ा थे ।
प्रदेश से अपने घर को,पथ पर सिर्फ साथ थे, तो वह रोटी का टुकड़ा ,
जिसके आस में वह प्रदेश को चला आया था।
मजदूर की पेट के भुख मौत से ही मिटी ,
रोटी के टुकड़ों की आस में।
आज फिर वह सियासत के गले मजदूरों की मोतों पर भी , सियासती गंदी करने लगे।
अरे ओ सियासत ,
मजदूरों को ठगते-ठगते पेट नहीं भरा तो ठुँस लो गले में वह रोटियां ,
जो बिखरी थी रोटियाँ पटरियों में,
मजदूर भी आखिरकार हार ही गया सियासत के आगे,
रोटी के टुकड़ों के आस में।
✍️ Laks
Mechanical Engg (Jharkhand)
रोटी के टुकड़ों के आस में ।
चल पड़ा था।
अपने पथ पर , रोटी के टुकड़ों के आस में ।
जीवन के उन संघर्षों में भी वह लड़ा
रोटी के टुकड़ों के आस में ।
भोर जगे थे, दिन भर वह मेहनत भी किया
रोटी के टुकड़ों के आस में ।
बिखरी पड़ी थी रोटियाँ पटरी पर ,
वहीं पास में बिखरे पड़े थे टुकड़ों में , वह बहादुर माँ के संतानें ।
घर से कह के निकले थे , प्रदेश से अगली बार त्यौहार में ही लौटूँगा ।
बुढ़े माँ-बाप के लिए दवाईयाँ लाऊंगा ,
पत्नी के लिए एक खूबसूरत बनारसी साड़ी और बच्चों के लिए ढेर सारे मिठाइयों और खिलोने भी लाऊंगा।
घर से प्रदेश के लिए गये भी थे , तो वह
रोटी के टुकड़ों की आस में।
आया कोरोना ठप्प हुई व्यापार , छीन गया मजदूरों के रोजगार भी।
और लक डाउन में खत्म हुई बची खुची पुँजी ,
रोटी के टुकड़ों की आस में।
आस तो जगाया था सियासत दारों ने भी वोट लेते समय ,
सुख दुख में शामिल रहुँगा , मुसीबतों में भी सहारा बनुँगा।
उन्हें आस तो था , सत्ता से मुसीबत के दिनों में सहारे पाने की ,
पायी भी तो सिर्फ झुठी खोकली आस।
पैदल ही निकल पड़ा थे ।
प्रदेश से अपने घर को,पथ पर सिर्फ साथ थे, तो वह रोटी का टुकड़ा ,
जिसके आस में वह प्रदेश को चला आया था।
मजदूर की पेट के भुख मौत से ही मिटी ,
रोटी के टुकड़ों की आस में।
आज फिर वह सियासत के गले मजदूरों की मोतों पर भी , सियासती गंदी करने लगे।
अरे ओ सियासत ,
मजदूरों को ठगते-ठगते पेट नहीं भरा तो ठुँस लो गले में वह रोटियां ,
जो बिखरी थी रोटियाँ पटरियों में,
मजदूर भी आखिरकार हार ही गया सियासत के आगे,
रोटी के टुकड़ों के आस में।
✍️ Laks
Mechanical Engg (Jharkhand)