...

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रोटी के टुकड़ों के आस में
आज सोया है फिर वह मजदूर
रोटी के टुकड़ों के आस में ।

चल पड़ा था।
अपने पथ पर , रोटी के टुकड़ों के आस में ।

जीवन के उन संघर्षों में भी वह लड़ा
रोटी के टुकड़ों के आस में ।

भोर जगे थे, दिन भर वह मेहनत भी किया
रोटी के टुकड़ों के आस में ।

बिखरी पड़ी थी रोटियाँ पटरी पर ,
वहीं पास में बिखरे पड़े थे टुकड़ों में , वह बहादुर माँ के संतानें ।

घर से कह के निकले थे , प्रदेश से अगली बार त्यौहार में ही लौटूँगा ।

बुढ़े माँ-बाप के लिए दवाईयाँ लाऊंगा ,
पत्नी के लिए एक खूबसूरत बनारसी साड़ी और बच्चों के लिए ढेर सारे मिठाइयों और खिलोने भी लाऊंगा।

घर से प्रदेश के लिए गये भी...