...

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फिर हूआ यूँ की "
फिर हुँआ यूँ की _
कुछ ही दिनों में, वोह मेरा नाम बन गया।
हर कोई नज़रो मे,उसके सिवा आम बन गया।
खाली सारा दिन उसके बिना,वोह ही मेरा काम बन गया।
फीके पड़ गये रिश्ते सारे,वोह ही मेरा जहाँन बन गया।
मूर्ख किसी पागल सा मै, वोह सम्पूर्ण ज्ञान बन गया।
अब मेरे नाम से पहले उसका नाम, वोही मेरी पहचान बन गया।
गुरुर है वोह मेरा,मेरी सोहरत वोह मेरी शान बन गया।
बेघर किसी फ़क़ीर का, वोह आसरा घरबार बन गया।
किसी सेवक दास सा मै, देखतें देखते वोह मेरा राम बन गया।

फिर हूआ यूँ _
की टूटा सपना आँखों का, वोह अधूरा मेरा अरमान बन गया।
फिर सोऊंगा किसी रोज़ वही नींद, बेचैन दिल का वोह चैन बन गया।
दास्ता जारी हैँ मुझमे ही कही, नाह अभी कहानी को विराम मिल गया.....

फिर हूआ यूह की ___ *


© तरुण”