...

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मैंने जीना सीख लिया......
कभी अंधेरा, कभी चांदनी,
आंसू और मुस्कान है जीवन,
सुख - दुख के विरह मिलन का,
कुदरत का वरदान है जीवन...
निर्झर जैसा मानव जीवन,
सुख - दुख दोनों किनारे है।
उठती लहरें जीवन की मस्ती,
हम सब बहते धारे हैं
सुख - दुख के दोनों तिरो से
मैंने टकराना सीख लिया,
मैंने जीना सीख ...
एक समय जब ऐसा आया
जब घनघोर अंधेरा छाया,
जीवन पथ पर चलते - चलते ,
मंजिल से पहले थक गई थी काया।
लक्ष्य दूर और लंबी राहे, पथ तम था ढका,
तम का सीना चीर गगन में,
जुगनू को उड़ता देख लिया,
मैंने जीना सीख लिया.......
एक तूफान जोरो का आया
तिनका - तिनका बिखर गया
आश्रय टूटी,सपने टूटे,
पथ साथी सब छूट गया
संगी साथी , ख्वाबों की बाती,
प्रिय - अप्रिय कोई रहा नहीं,
विधि का निष्ठुर हाथ पड़ा एक,
सबकुछ मानो लूट गया।
तिनका थामे चोच में अपनी
एक विहाग को देख लिया
मैंने जीना सीख लिया.....
धर्म के नाम पर लड़ते देखा
कर्म के नाम पे रोते देखा,
स्वार्थ के हर एक टुकड़े पर
भाई - भाई को लड़ते देखा
दुख से हर्षित होती दुनिया
सुख से बहुत जलन है
मौत जहा आसान है लेकीन
बहुत कठिन जीवन है।
जीवन के इस विष- अमृत को
मैंने पीना सीख लिया .....
मैंने जीना सीख लिया,
मैंने जीना सीख लिया..