...

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करम का मिठा फ़ल!
परमात्मा आपको बीज दे देता हैं,
किंतु बोना आपको ख़ुद ही पड़ता हैं..
यदि ज़रा भाग्यशाली हुए तो
वह बो के भी दे देगा..
किंतु कटाई छटाई आपको ख़ुद ही करनी पड़ेगी...
किंतु थोड़ा और भाग्यशाली हुए तो वह कटाई छटाई करके भी आपको दे देता हैं..
किंतु भोजन तो ख़ुद ही पकाना होगा.. आपको।
किंतु यदि थोड़ा ज़्यादा भाग्यशाली हों
तो पका तो वह देगा..
किंतु परोसना आपको ख़ुद ही पड़ेगा...
और यदि वाक्य आप शौभाग्यशाली हुए तो
वह आपको परोस के भी दे देगा...
किंतु निवाला तो मुह में आपको ख़ुद ही डालना होगा।
और यदि आप परम-भाग्य लेके पैदा हुए...
परम-भाग्यशाली हुए..
भोजन मुह तक भी वही डाल देगा...
किंतु...
आप भाग्यशाली हो,
सौभाग्यशाली हो
या परमभाग्यशाली...
भोजन को चबाना तो आपको ही पड़ेगा...
निगलना तो आपको ही पड़ेगा..
यह काम कोई दुजा आपके लिए नहीं कर सकता स्वयम परमात्मा भी नहीं कर सकते।
ना ही कोई सिखा सकता है..
निगलना कैसे है..
चबाना कैसे है..
यह प्राकृतिक घटना है
भूख उपरांत भोजन मिलने की...
फ़िर हजम भले परमात्मा कर देगा
किंतु निवाले को चबाना
और निगलना तो आपको ही पड़ेगा..
और यदि आप इतना नहीं कर सकते..
करम का फ़ल चाहें मीठा ही क्यों ना हों.. ।
यदि आप इतना नहीं कर सकते...
आप परमात्मा को दोष नहीं दे सकते,
के वह आपके शरीर को लगा क्यों नहीं।
इतना पौष्टिक होकर भी यह फ़ल इसके पोषक तत्व आपको मिले क्यों नहीं!?
नहीं कर सकते आप शिकायत
यदि जो आप फल को चबाने और निगलने का काम भी नहीं कर सकते।
इतना कष्ट भी यदि आप उठा नहीं सकते,
फ़िर दोषी कौन..?
इसका उत्तर व्यक्ति के अपने पास
स्वयम के पास होना चाहिए।
या उसे अपनी ही आत्मा से पूछना चाहिए..
इसका उत्तर आपकी आत्मा के सिवा
आपको कोई नहीं दे सकता।

30.6.2024
12.06pm

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