...

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सोच सब पर भारी
तेज धूप
दो पल का आराम छाओ
रुकूँ या चलू
सब पर सोच भारी
दूर कहीं मंज़िल
कुछ बिछड़े
कुछ मिलेंगे
किस के साथ चलू
सोच सब पर भारी
जो छूट गये वो यादें
जो मिले नहीं वो ख़्वाब
नींद लू ख़्वाब के लिए
या चलू दोपहर में
मंज़िल अभी बहुत दूर
सोच सब पर भारी
कदम कदम साथ नहीं
मेरे तेरे कोई साथ नहीं
बस सोच सब पर भारी
बेवजह के जज़्बात है

© 𝕤𝕙𝕒𝕤𝕙𝕨𝕒𝕥 𝔻𝕨𝕚𝕧𝕖𝕕𝕚