...

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मर गया....
ढूँढता है दिल अब तलक़, आख़िर किधर गया,
वो लम्हा जो बग़ैर तेरे यूँ, टूटकर बिखर गया।

इक़ हसरत ने फिर देखो, ली अंगड़ाईयाँ जीस्त,
सोच कर दास्ताँ, दिल इस तरह सिहर गया।

इक़ साये की तरह लिपटा, मेरे साये से साया तेरा,
संग-संग रहा है वो, साया मेरा, जिधर-जिधर गया।

सुनो! कहो न, हुई क्या ही, ख़ता दिल-ए-नादां से,
क्यूँ इस क़दर टूटा, निगाहों से तेरी क्यूँ उतर गया।

हर चीज़ जहां में सारे, है ख़ातिर तेरी, उसी तरह,
क्यूँ भुला दिया मुझे, इस तरह, जैसे कि मर गया।
© विवेक पाठक