...

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जब से तुमने नंबर दी
जब से तुमने नंबर दी
तब से मैंने तुम्हें सैकड़ो लिखा
लेकिन तुमने एक पर भी नहीं
अच्छा बुरा या गिला शिकवा कहां
जब से तुमने,,,,,,,,

पढ़ती रही हर लाइन को
मोहतरमा तुम्हें कैसा लगा
हमें कुछ भी खबर नहीं लेकिन
फिर भी मैं तुम्हें दिल खोल कर भेजता रहा
जब से तुमने,,,,,,,,

खूबसूरत रंग खूबसूरत सौंदर्य
तेरा प्रदर्शन हर पंक्ति में करता रहा
तुम गुरुर कि मारी पढ़ती रही लेकिन
एक पर भी नहीं कमेंट की केवल पढ़ता रहा
जब से तुमने,,,,,,,,

तेरी मुरझाए हुए चेहरे को भी मैंने
खिलता गुलाब वह लाजवाब लिखा रहा
लेकिन तुम इस मेहनत को भी नहीं समझी
पता नहीं क्या तुम करता रहा
जब से तुमने,,,,,,,,

दर्द होती रही बेचैन दिल रोता रहा
तुमने समझी नहीं मगन अपने आप में रहता रहा
खामोशी की भाषा क्या होती है नहीं पढ़ सका
और तड़प तड़प कर मैं जीता रहा
जब से तुमने,,,,,,,,

संदीप कुमार अररिया बिहार
© Sandeep Kumar