ख़त
कल फिर उसका सलाम मिला है
ख़त में मेरा नाम मिला है
दिल हुआ है पागल सा
के संजोग से ये पैगाम मिला है
बड़े दिन बीते मुलाक़ात हुए
ज़ाहिर तुमसे जज़्बात हुए
ये सब कहने बाद सनम के
मुझ से शुरू सवालात हुए
नज़्में अच्छी लिख लेते हो
खुद पीड़ा में दिख लेते हो
ज़मीर बचा है थोड़ा या
शोहरत की खातिर बिक लेते हो
मेरी ख़ामी चीख-चीख बतलाते हो
‘ऐब मेरे तुम हर्फ़-हर्फ़ कह जाते हो
ख़ुद्दार कहूँगी मैं भी तुमको
जिस दिन पन्नों पर खुद की बातें हो
माना हुई कुछ खताएं मुझसे
मजबूरी कैसे बताऊं तुमसे
बेबस,बेकस,लाचार थी मैं खुद
पर कभी न की थीं ज़फाएं तुमसे
हमेशा तुमने वक्त़ लिया
वादा झूठा हर वक़्त किया...