...

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सालों का संग
जिम्मेदारियां बहुत है जिंदगी में,
कुछ उलझे तुम भी हो,
कुछ उलझी मैं भी हूं, दुनियादारी में...

ये जान लो !!
गुजरते सालों ने
आदत बना दी है
एक दूसरे की....

तुम्हारी हर आहट
मैं भीड़ में भी
पहचान लेती हूं....

मैं सज धज कर,
तुम्हारे लिए ही
दरवाजे के ओट पर
खड़ी आज भी रहती हूं...

बड़ी मुश्किलों से,
वक्त से कुछ लम्हें मिलते हैं,
इन्हे नाराजगी में ना जाया करो...

कुछ अपनी सुना लिया करो,
कुछ मेरी भी सुन लिया करो...
हां सब भूल कर,
संग मेरे थोड़ा मुस्कुरा लिया करो....




© अपेक्षा