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वो समझती नहीं
मैं घडी घडी हर घडी इशारेें करता हूँ , वो मस्त हैं अपने में समझती नहीं !
मैं काग़ज़ों पे जस्बात उतार देता हूँ , वो पढ़ती तो हैं पर समझती नहीं !
उसे हँसाने क लिये पहले रुला देता हूँ मैं , वो हस्ती तो हैं पर समझती नहीं !
रात भर कहानियो से उसे जगा तू हूँ मैं , वो जगती तो हैं पर समझती नहीं !
किसी रोज ना मिलु तो वक़्त कटता नहीं उसका , इश्क़ तो उसे भी हैं पर वो समझती नहीं !
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मैं काग़ज़ों पे जस्बात उतार देता हूँ , वो पढ़ती तो हैं पर समझती नहीं !
उसे हँसाने क लिये पहले रुला देता हूँ मैं , वो हस्ती तो हैं पर समझती नहीं !
रात भर कहानियो से उसे जगा तू हूँ मैं , वो जगती तो हैं पर समझती नहीं !
किसी रोज ना मिलु तो वक़्त कटता नहीं उसका , इश्क़ तो उसे भी हैं पर वो समझती नहीं !
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