...

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“तुम हो”
तुम हो उस चांद की तरह
जो कभी दिखता है कभी छुप जाता है

तुम हो उस ओस की तरह
जो कभी ठहरता है कभी लुढ़क जाता है

तुम हो सुबह की कोहरे की तरह
जो कभी छाया रहता है कभी छंट जाता है

तुम हो उस बादल की तरह
जो कभी घना होता है कभी उड़ जाता है

तुम हो उस चिड्डे की तरह
जो आता है छज्जे पर और फुर्र हो जाता है

तुम हो मुट्ठी में भरे रेत की तरह
जो कभी भरा होता है कभी फिसल जाता है

तुम हो मिट्टी की सौंधी खुशबू की तरह
जो पहली बारिश के बाद खो जाता है

तुम हो रात के जुगनू की तरह
जो दिखता है पल भर में गायब हो जाता है

हां! तुम हो गुलर के फूल की तरह
जिसे आजतक मैंने देखा ही नहीं...

© ढलती_साँझ