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हर नारी की यही कहानी
नारी की यही कहानी

काम से निकली काम पे चलती
वर्षो की रीत पुरानी
खुद कमाती खुद पकाती, हर नारी की यही कहानी।।

पुरुष प्रधान इस देश में नारी
हार कभी न मानी
अस्तित्व की खातिर लड़ाई जो लड़ती, दुनियाँ अबला जिसको मानी।।

दुःख-दर्द जाने क्या-क्या सहती
जिसे पहचान खुद की बनानी
काम, शिक्षा, पालन-पोषण करती, जल्दी होती बड़ी स्यानी।।

कभी आराम-विश्राम न उसके भाग में
जिम्मेदारियों की डोर जो थामी
रिश्ते-नाते संग परिवार संभालती, जिसके धैर्य की थाह न पानी।।

शब्दों में कैसे वर्णित करूं मैं
हर शब्द की वही तो वाणी
शक्ति-मात्रा, प्रकृति स्वरूप जो, शक्ति- नियति न जिसकी जानी।।

कर्म-धर्म की नींव वही है
दुनियां जीवनदायिनी रूप में जानी
चहुं ओर उसकी माया-छाया, हर नारी की यही कहानी।।