...

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तन्हा रोता है दिल मेरा, उस पगली की याद में।
क्या करूं मैं बेचैन हूं।
दिल मेरा बस रोता है।
उस पगली की याद में,
रातों में न सोता है।


डूबा है उनके ख्वाबों में,
वो नजरो में न मिलती है।
कैसे बयां करें वो अपनी कहानी,
आती है बस चली जाती है।


कितना समझाऊं उसको,
वो खो जाता है याद में।
अकेला रहकर रात गुजारता है,
लेकिन न वो करती है फरियाद में।


क्यों भूल नहीं पता उनको,
जो दिल की बातें कहा करती थी।
जब- जब आती थी, वो सपनो में,
जो शर्माकर गले लगती थी।


अब तो कितना मनाऊं दिल को,
वो तो बेचारा मानता ही नहीं है।
वो पागल मुझे भी रुला देता है,
वो मेरी पुरानी कहानी जानता ही नहीं है।


क्या करूं मुझको भी तड़प होती हैं तन्हा,
जो ये आंसू बहता है मुझसे , कुछ नहीं कहता है।
बार- बार उसका ही नाम पुकारता है।
जो सदा के लिए, उस पगली के दिल में रहता है।
© मनोज कुमार गोंडा जिला उत्तर प्रदेश