पशोपेश..
बड़ी पशोपेश में रहा उससे बिछडकर
न मालूम ख़ुद से खुश, कि रूठा हूँ मैं...
मेरा अक्स न दिखता है, आईने में भी
जाने ख़ुद से मिल चुका कि छूटा हूँ मैं...
बयां न किया ख़ुद का किस्सा भी मैंने
ख़ुद में अंदर सिमट गया कि टूटा हूँ मैं...
इकट्ठा किया जो भी बचा...
न मालूम ख़ुद से खुश, कि रूठा हूँ मैं...
मेरा अक्स न दिखता है, आईने में भी
जाने ख़ुद से मिल चुका कि छूटा हूँ मैं...
बयां न किया ख़ुद का किस्सा भी मैंने
ख़ुद में अंदर सिमट गया कि टूटा हूँ मैं...
इकट्ठा किया जो भी बचा...