एक प्रार्थना।
देखे हैं इस जीवन में,
हमने कई शरद मास।
सोचा भी न था,
कैसे हो सकता है इतना कठोर,
जैसा यह शरद मास।
किससे कहूं,कैसे कहूं,
क्या हैं अहसास मेरे।
देख अपनी मां की हालत,
लेटी हैं बिस्तर पर,
दूसरों पर निर्भर,
गिरते हैं आंखों से आंसू मेरे।...
हमने कई शरद मास।
सोचा भी न था,
कैसे हो सकता है इतना कठोर,
जैसा यह शरद मास।
किससे कहूं,कैसे कहूं,
क्या हैं अहसास मेरे।
देख अपनी मां की हालत,
लेटी हैं बिस्तर पर,
दूसरों पर निर्भर,
गिरते हैं आंखों से आंसू मेरे।...