सागर की आत्मकथा
मैं सागर हूँ!
शांत हूँ, ऊपर की सतह पर!
एक जीव-जगत पलता है;
मेरे अंदर।
नदियों का संगम-स्थल हूँ!
गम्भीरता का पर्याय हूँ ,मैं!
क्षितिज तक फैलाव लिए;
अथाह गहराई है मेरी !
सब कुछ अपने अंदर;
समेट लेने का;
सामर्थ्य भी !
सतह पर;
यही है मेरा परिचय!!
मगर, अंदर की उथल-पुथल को;
छिपाए हूँ मैं;
अपने विशाल आकार के नीचे;
गम्भीर स्वभाव के कारण!!
मेरे तल में पड़े...
शांत हूँ, ऊपर की सतह पर!
एक जीव-जगत पलता है;
मेरे अंदर।
नदियों का संगम-स्थल हूँ!
गम्भीरता का पर्याय हूँ ,मैं!
क्षितिज तक फैलाव लिए;
अथाह गहराई है मेरी !
सब कुछ अपने अंदर;
समेट लेने का;
सामर्थ्य भी !
सतह पर;
यही है मेरा परिचय!!
मगर, अंदर की उथल-पुथल को;
छिपाए हूँ मैं;
अपने विशाल आकार के नीचे;
गम्भीर स्वभाव के कारण!!
मेरे तल में पड़े...