पहले
पहले पहले हवस इक आध दुकाँ खोलती है
फिर तो बाज़ार के बाज़ार से लग जाते हैं
बेबसी भी कभी क़ुर्बत का सबब बनती है
रो न पाएँ...
फिर तो बाज़ार के बाज़ार से लग जाते हैं
बेबसी भी कभी क़ुर्बत का सबब बनती है
रो न पाएँ...