...

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ख़्वाब
मैख़ाने जाकर किया जाए अपना वक़्त ख़राब क्यूँ
नशा जब उसकी आँखों से हो जाए, तो शराब क्यूँ...

फाड़ कर फ़ेंक दिए मैंने वो पन्ने फलसफों के सभी
जब पढ़ सकता हूँ उसके लबों को, तो क़िताब क्यूँ...

जो भी दिल में हो तुम्हारे, मुझ से कह दो खुलकर
इतना तकल्लुफ, और आप आप का लिहाज़ क्यूँ...

अब कोई अजनबी तो नहीं...