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तजावुज़-ए-देह...(गजल)
मुक़द्दर का खेल है या किस्मत का मलाल है
बनाया क्यूँ नारी को ये सबसे बड़ा सवाल है

मासूमियत को रौंदते हैं दरिंदगी के जो हैवान
जिन्हें एहसास तक न हो आदम वो कैसा हराम है

चेहरे पे नक़ाब पहने हाथों को फैलाते हैं
फूल से बदन को कुचलते ये कैसा कमाल है


आँसूओं में लिपटी चुप्पी की ये कहानियाँ
हर क़दम पे मिलती जाए जुर्म का यही हाल है

माँ-बहन-बेटी से जुड़े रिश्तों का क्या हुआ?
समाज में हर तरफ फैला ये कैसा पामाल है

शोषण की इन हवाओं में जाने कब थमेगा ये तूफ़ान?
हर बदलाव के किरण का अब यही ख्याल है

अपनी अपनी बहनें अपने अपने भाईयों को समझे
अब यही इस समस्या का आमाल है..
© --Amrita

#writo gajal
#RESPECTWOMEN
# capture the anguish and societal reflection necessary to address the grave issue of rape....