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ज़िन्दगी के रंग
ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जिन्होंने पाला पोसा उनसे ही उन
बच्चों के आगे भीख मंगवाती है

ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जो बच्चे को घर लाकर फूले नहीं समाते
उन्हें घर से वृद्ध आश्रम में फिंकवातीं है

ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जो सारी उम्र बच्चों का पेट भरे
दो वक्त की रोटी के लिए उन्हें ही तरसाती है

ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जो बच्चे का एक दर्द नहीं सह पाते
उससे ही उन्हें कितने दर्द दिलवाती है

ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जो बच्चे पर एक हाथ ना उठा सके
उन बच्चों से उन्हें पिटवाती है

ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जो बच्चे के नखरे पूरे करते है
उनकी जरूरतें भी पूरी ना करवाती है

ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जो बोलना बच्चों को सिखाते है
वही बच्चे उनके आगे ज़बान चलाते है

ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जो बच्चे का बोझ उठाते है
वही उन्हें सहारा देने में कतराते है

ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जो बच्चे को पहला शब्द लिखना सिखाते है
वही वक्त आने पर निःशब्द हो जाते है

ज़िन्दगी कितने रंग बदलती है
जो कंधे पर सारी दुनिया घुमाते है
अंत समय एक कंधा भी नसीब ना करवाती है

वही से मेरा मतलब है माँ बाप
बुढ़ापे में नहीं होता उनका खुशी से कभी मिलाप

कहते है सब अपने कर्म यही भोगते है
माँ बाप के लिए हमेशा दुख ही क्यों होते है

जो अपना सर्वस्व औलाद पर न्योछावर करें
वही औलाद सुकून के दो पल भी ना दे

मन्नतें मांगे वो औलादो के लिए
वही औलाद दुख दे उम्र भर के लिए

क्या फायदा ऐसे बच्चों का
जो माँ बाप को दो वक्त का खाना ना दे सके

जिन हाथों को पकड़ कर चलना सिखे
उन्हें बुढापे में सहारा ना दे सके

जिन्होंने ये सुन्दर दुनिया दिखाई
बुढापे में उनकी आंखें ना बन सके

ज़िन्दगी इतने ज़ुल्म ना कर
माँ बाप को ऐसे मजबूर ना कर।

दीप्ति Sood24