...

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क्या यह वही है
क्या ये वही सकल ओ सूरत है
जिसके लिए तरसा था में कभी
आज रूबरू है तो मैं हैरां क्यों नही।
वो पाज़ेब उसके पैरों में दिए मेरे ही है
ये देख मै आज चौका क्यों नहीं।
वो उसकी पलके आज मेरे सामने भीग रही है
ये मंजर देख आज मेरा दिल पिघला क्यों नहीं।
वो मुझको "अमृत" नही फिर "आप" कहकर पुकार रही है
ये सुन मुझको फिर मोहब्बत हुआ क्यों नहीं।
क्या हुआ है मुझको
ये कैसी परेशानी में हूं मैं,
क्या मैं उसको भूल चुका हूं
या अब वो मुझे याद नहीं।
© Amrit yadav