कई रोज़ गुज़र गए है।
कई रोज़ गुज़र गए है।
मेरे कलम से लफ़्ज़ों को निकले हुए।
मानो मेरे अल्फ़ाज़ मुझसे ही रूठ गए हो।
मेरे कलम की सियाही जैसे युही सूख रही हो।
इस ब्याज़ के वर्क सुने हो रहे है।...
मेरे कलम से लफ़्ज़ों को निकले हुए।
मानो मेरे अल्फ़ाज़ मुझसे ही रूठ गए हो।
मेरे कलम की सियाही जैसे युही सूख रही हो।
इस ब्याज़ के वर्क सुने हो रहे है।...