...

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आप से तू तक..
सच कहूँ तो कभी पूरा सावन है,
कभी महज़ बूंद भर प्यास है तू।
कभी निराशा का खाली आसमां,
कभी रिमझिम सी बरसात है तू ।
ये इंद्रधनुष . ..नहीं है...! तो न हो मेरा,
मेरी तो जगनुओं भरी रात है तू ।
कि..कोई मुझसे पूछे नैनों के सुख,
उफ्फ..कितना खूबसूरत..
अनदेखा सा ख्वाब है तू।
दिखाई देती हैं सब चेहरों में..
तेरी ही प्रतिलिपियां,कमबख्त...
ये मुझे किस हद तक याद है तू।
कुछ यूं बसर करती है मुझ में,
की मेरी हर श्वास से पहले और बाद है तू।
© मन_के_मनके_