...

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लम्हा
तू ही है वो लम्हा
बन्धा है जिस पर समा
इंतज़ार है बस तेरा
दीदार-ए-जुस्तजू है मेरा।

बढा दे महफिल की रवानगी
जहाँ बसती हैं बस सादगी
लोगो की इनायत है जमा
ये लम्हा बढा देगी मेरी समा।


© वसीम आज़म