कुछ देर तो ठहरती मेरे साथ
आलिंगन में लेकर तुझको यौवन तेरा मैं गढ़ देता।।
कुछ देर ठहरती संग मेरे...
वह प्रेम प्रियतमा जैसा था, वह रूप रुक्मिणी जैसा था।
वह चंद्ररात की बेला थी, वह दृश्य स्वपन के जैसा था।।
कुछ देर ठहरती संग मेरे...
मोह भरा था उस मंथन में, अश्रु कहां से आए थे?
मेरी चाहत के दर्पण में कुछ पुष्प तभी मुरझाए थे।
तू कह देती मैं सुन लेता, तू कह देती मैं बुन लेता।
उस विरह की प्रेम कहानी को, तेरे होंठों...
कुछ देर ठहरती संग मेरे...
वह प्रेम प्रियतमा जैसा था, वह रूप रुक्मिणी जैसा था।
वह चंद्ररात की बेला थी, वह दृश्य स्वपन के जैसा था।।
कुछ देर ठहरती संग मेरे...
मोह भरा था उस मंथन में, अश्रु कहां से आए थे?
मेरी चाहत के दर्पण में कुछ पुष्प तभी मुरझाए थे।
तू कह देती मैं सुन लेता, तू कह देती मैं बुन लेता।
उस विरह की प्रेम कहानी को, तेरे होंठों...