...

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बैरागी
संसारिकता से विरक्त हूं
नहीं होना चाहता किसी का
सभी से त्वयत्
मोह के बंधन से मुक्त होना चाहता हूँ
बैराग धरण करना चाहता हूं
राग, काम और द्वेष से
अज्ञान के परिवेश से
सबसे अलग होना चाहता हूँ
मैं बैरागी होना चाहता हूँ
प्रेम और मोह को त्याग के भस्म करना चाहता हूँ
मन के सारे कलेशो से दूर होना चाहता हूँ
नहीं किसी की आस में
मैं हूं खुद से खुद की तलाश में
जीवन की बधाओ ....से निकलना चाहता हूँ
अपनी तरफ आने वाली हवाओ का रुख बदलना चाहता हूँ
खुद से मिलना चाहता हूँ
बैरागी होना चाहता हूँ
सुरभि त्रिपाठी