...

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अबके मुझको 'भाई' चाहिए
इज़्ज़त रास नहीं आती है; थोडी सी रुसवाई चाहिए
बहुत निभायी दुनियादारी, अब हमको तन्हाई चाहिए।
बादल ने दरवाज़ा खोला, दस्तक दी जब सावन ने,
मौसम की फरमाइश है ये, अदरक वाली चाय चाहिए।
ना लेन देन, ना जात पात, ना भेद भाव, ना लाज शरम
कौन मनाये पगले को; इसको 'ऐश्वर्या राय' चाहिए।
मीर-ओ-ग़ालिब रट के हमने कुछ कुछ लिखना शुरू किया
लफ्ज़ों में अब तेवर है पर ग़ज़लों में गहराई चाहिए।
'बिट्टू' जाने क्या सुन आया, माँ के पेट को छू कर बोला
बहन जलाई जाती है माँ , अबके मुझको 'भाई' चाहिए।
~अजय बैरागी
© ajay_bairagi