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द्रौपदी वस्त्रहरण
द्रोपदी बोली मैं हूँ एक पतिव्रता नारी
मुझ पर वैश्या होने का आरोप लगा भारी।
भरी सभा में खींचे गए मेरे वस्त्र
बड़े बड़े योद्धा सब हो गए निशस्त्र।

क्यों सबकी नजरें ये अन्याय देखकर झुक गई
क्यों सबकी तलवारे म्यानों के भीतर रुक गई।
निर्ममता से खींचे गए मेरे केश
मेरे स्वाभिमान को पहुँची गहरी ठेस।

मेरे पति सब हो गए थे असमर्थ
मैं करती रही प्रलाप व्यर्थ।
पुरुषों के दरबार में एक नारी थी रोती
सबके समक्ष में अपना अस्तित्व थी खोती।

जब सबके मुख पर पड़ा था ताला
सब मौन हो कर देख रहे थे अधर्म ये काला।
सबकी भ्रष्ट हो गयी थी मति
यह पाप देख मानो रुक गयी थी काल की गति।

तब मेरी सहायता को आए कन्हैया
उन्होंने पार लगायी मेरी डूबती नैया।
जगत में होने नहीं दिया मुझे केशव ने लञ्जित
अपने चमत्कार से मेरी मर्यादा रखी सुसज्जित।
© Vinisha Dang