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सुंदर पहाड़
देखो लगते कितने सुंदर हैं पहाड़।
शांत स्थिर न कोई इनमें है दहाड़।।

घमंड नही ज़रा अपनी सुंदरता पर।
मजबूती शान से खड़े अधीरता पर।।

ऊँचे चढ़ना इतना आसान नही पर,
अपनी ऊँचाई पे कोई अभिमान नही।

प्रकृति के हैं वो अमूल्य अभिन्न हिस्से,
कालो से धरती पे हैं जुड़े कई किस्से।
उनका अपना कोई ऐसा स्वार्थ नही,
प्रकट स्वरूप दूजा कोई परमार्थ नही।

ऋषि मुनि का तप हो या
अविनाशी शिव का घर हो,
जड़ी बूटियों का भंडार यहीं पर,
अद्भुत हैं कई चमत्कार यहीं पर।
नदियों का द्वार यहीं पर,
झरनों की बहार यहीं पर।
जलधर निवास यहीं पर,
रश्मि पहली सूर्य यहीं पर।

फट जाए तो ज्वाला निकले,
धरती कोख से लावा निकले।
पिघले बर्फ जो सागर में मिले,
बदले मौसम सुंदर फूल खिले।

हर मूर्ति है अंश जो तराशी इनसे,
हर मार्ग है पथ जो चलता इनसे।
हरेक ईंट है जुड़ी दीवारें खड़ी जिनसे,
हर ऊँची इमारत का आधार है जिनसे।

हर सीढ़ी है घाट पवित्र नदी किनारे,
अलोकन है स्तब्ध दूर खड़ा निहारे।
मंदिर, मस्जिद, चर्च और गुरुद्वारा,
महल, मकान है इनसे दर्शन सारा।

देखो लगते कितने सुंदर हैं पहाड़,
मानव इनकी सुंदरता रहा उखाड़।
पहाड़ो का अपना एक जीवन हैं,
हाथ जोड़ प्रणाम मस्तक नमन है।


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© ALOK Sharma...✍️