पुरानी यादें...
कभी शब्द, कविताऐं बनकर काग़ज़ पर बरसती है,
कभी दिल रोता है, कभी आँखें फुट पड़ती है,
कभी गालों पर अश्रु ठहर जाते है.
मानो औंस की बूंद हो जैसे,
और तुम्हारी यादें अक्सर रात को
टपक... टपक... टपक... तकिया गिला कर देती है !!
और ये लोग भी ना.. ख़ामख्वाह कहते है की,
ये बारिशों के ....मौसम होते है...
© shirri__
कभी दिल रोता है, कभी आँखें फुट पड़ती है,
कभी गालों पर अश्रु ठहर जाते है.
मानो औंस की बूंद हो जैसे,
और तुम्हारी यादें अक्सर रात को
टपक... टपक... टपक... तकिया गिला कर देती है !!
और ये लोग भी ना.. ख़ामख्वाह कहते है की,
ये बारिशों के ....मौसम होते है...
© shirri__