बड़े नासमझ हो तुम..
बड़े नासमझ हो तुम, जमाने की खबर नहीं है तुम्हें..
दायरे में रहो, कायदे में रहो, अपनों की फिकर नहीं है तुम्हें..??
क्यूँ निकल आते हो,सुनसान राहों में रातों को..
ये वक़्त मुकम्मल नहीं मिलन मुलाकातों को..
होश में आओ सम्भल जाओ, वक़्त की कदर नहीं है तुम्हें..??
राह चलते आँखों का सुरमा चुरा लेते हैं लोग..
मोहब्बत...
दायरे में रहो, कायदे में रहो, अपनों की फिकर नहीं है तुम्हें..??
क्यूँ निकल आते हो,सुनसान राहों में रातों को..
ये वक़्त मुकम्मल नहीं मिलन मुलाकातों को..
होश में आओ सम्भल जाओ, वक़्त की कदर नहीं है तुम्हें..??
राह चलते आँखों का सुरमा चुरा लेते हैं लोग..
मोहब्बत...