गुल की महफिल का एक फूल
गुल की महफिल का एक फूल
आंखों में उतर रही है
खयालों में सज सबर कर
अश्वगंधा सी महक रही है
महाकुंभ के मेले में
चहकती दहकती सज-सबर रही है
लजीज चेहरा
झरने सी झर रही हैं
खुशबू फैलाए गगन में
कोमल बदन आसमा मचल रही...
आंखों में उतर रही है
खयालों में सज सबर कर
अश्वगंधा सी महक रही है
महाकुंभ के मेले में
चहकती दहकती सज-सबर रही है
लजीज चेहरा
झरने सी झर रही हैं
खुशबू फैलाए गगन में
कोमल बदन आसमा मचल रही...