...

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हर नदी का भाग्य समंदर नहीं..
मेरे ह्रदय में
गहन अंधकार है
और यह अंधकार मुझे खाए जा रहा है
गहरी रिक्तता मुझे
विवेकशून्य कर रही है
बहुत कुछ है मेरे पास
और अधिक कुछ पाने की चाह भी नहीं
बावजूद इसके
ये रिक्तता मुझे
कमी,उदासी और एकाकी
की तरफ गहरा धकेल रही है।
मैं हाथ-पैर मार रही हूँ
ताकि इस विरक्ति की तरफ
खुद को न ले जाउँ।
लेकिन कुछ तो है
जो इस रिक्त को भरने की चाह में
सन्नाटे को कतर रहा है।
यदि तुम्हारी बात मानूँ तो
मुझे कल-कल करती नदी की तरह
रास्ता बनाकर बहते रहना है,
नदी के भाग्य में समंदर है
जो उसके एकाकीपन को
अपनी विशालता से भर देता है।
मन में ये ख़्याल भी आता है
कि हर नदी का भाग्य समंदर नहीं।
कहीं मैं भी
ऐसी ही नदी बनकर न रह जाऊँ!

-सीमा शर्मा 'असीम'

#हिंदी
© ©सीमा शर्मा 'असीम'