जो छूट गए पीछे वो पल जीना चाहती हूं ......
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जो छूट गए पीछे वो पल जीना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
बैठ पापा के कांधे पर मेला को मैं जाऊ
भरे खिलौनों से हों दोनो हाथ मेरे
फिर भी एक गुड़िया की खातिर ,
ज़िद करना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
बैठ साइकिल के पीछे वाली गद्दी पर
भईया संग पढ़ने मैं जाऊं
सांप सीढी के खेल में उनको मैं रोज हराऊँ
भरी ट्वाफियों से हो जेब मेरी फिर भी ,
एक च्यूइंगम की खातिर लड़ना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
फिर से मुझे बुलाए मईया
कहके गुड़िया रानी
रोज सांझ को मुझे सुनाए
परियों वाली कहानी
रख के सिर गोदी में उनकी
लोरी सुनना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
जो छूट गए पीछे वो पल जीना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
© Rekha pal
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जो छूट गए पीछे वो पल जीना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
बैठ पापा के कांधे पर मेला को मैं जाऊ
भरे खिलौनों से हों दोनो हाथ मेरे
फिर भी एक गुड़िया की खातिर ,
ज़िद करना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
बैठ साइकिल के पीछे वाली गद्दी पर
भईया संग पढ़ने मैं जाऊं
सांप सीढी के खेल में उनको मैं रोज हराऊँ
भरी ट्वाफियों से हो जेब मेरी फिर भी ,
एक च्यूइंगम की खातिर लड़ना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
फिर से मुझे बुलाए मईया
कहके गुड़िया रानी
रोज सांझ को मुझे सुनाए
परियों वाली कहानी
रख के सिर गोदी में उनकी
लोरी सुनना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
जो छूट गए पीछे वो पल जीना चाहती हूं
मैं फिर से बच्ची बनना चाहती हूं
© Rekha pal
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